असंख्य ग्रंथ मुखि वेद पाठ: असंख्य ग्रंथों में भी वेदपाठ प्रमुख है।
-डी. एस. एम. सत्यार्थी
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-डी. एस. एम. सत्यार्थी
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वेद कहते हैं -
‘विश्वेषु हि त्वा सवनेषु तुञ्ते समानमेकम्’
‘(कहो)’ समस्त उपासनाओं में, सवनों में, तू , एक, उपास्य है, समान रूप से’ -वेद अथर्ववेद, 20/72/1
यह कुछ नया नहीं है, वेद जिसकी घोषणा यहाँ करता है।
वेद प्रारंभ से ही इस सिध्दान्त पर बल देता है, इस प्रकार से अथवा उस प्रकार से।
‘इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्य: सुपर्णोगुरूत्मान्।
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहु:।’
‘वे उसे इन्द्र, मित्र, अग्नि कहते हैं, दिव्य है वह सुपर्ण गरुत्मान। सत्पुरूष बुध्दिमत्ता के साथ एक अस्तित्व को अनेकों नामों से पुकारते हैं। वे अग्नि, यम, मातरिश्वा कहते हैं।’ – वेद /ऋग्वेद 1/164/46
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहु:।’
‘वे उसे इन्द्र, मित्र, अग्नि कहते हैं, दिव्य है वह सुपर्ण गरुत्मान। सत्पुरूष बुध्दिमत्ता के साथ एक अस्तित्व को अनेकों नामों से पुकारते हैं। वे अग्नि, यम, मातरिश्वा कहते हैं।’ – वेद /ऋग्वेद 1/164/46
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति’
‘विद्वान् पुरुष बुद्विमत्ता से एक अस्तित्व को अनेकों नामों से पुकारते हैं’
यह वही तथ्य हैं जो यहाँ दूसरे शब्दों में दोहराया गया है।
यही कारण है जपुजी 17 हमसे कहते हैं -
‘असंख्य ग्रंथमुखि वेदपाठ’
‘वेद का पाठ प्रमुख है, असंख्य ग्रंथों में’
क्यों ?
गुरूग्रंथ साहब इसका उत्तर इस प्रकार देते हैं -
‘ओंकार वेद निरमये’
‘ओमकार ने वेद का निर्माण किया है’
-गुरूग्रन्थ साहब, राजारामकली/महला 1/शबद 1
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